पुलिस कमिश्नर की छवि को धुमिल कर रहा है, जिला द्वारका कार्यालय!
दिल्ली में राकेश अस्थाना ने जब पुलिस कमिश्नर का पद भार संभाला, जोकि पहले सीबीआई में स्पेशल डायरेक्टर रह चुके हैं। तब उम्मीद जगी थी कि यह तेज़तर्रार अधिकारी पुलिस की गिरती छवि को सुधारने के लिए अवश्य कुछ करेगा और वही हुआ। राकेश अस्थाना ने सालों से एक ही थाने में जमे हुए पुलिसकर्मियों का ट्रांसफर करना शुरू कर दिया, जिनका प्रमोशन रूका हुआ था, उनके लिए रास्ता खोला, जो लंबी डियूटी के कारण छुट्टियां न मिलने से परेशान होकर अवसाद में जा रहे थे, उनके लिए आसान नियम बनाए। लेकिन भ्रष्ट कार्यशैली में लिप्त अधिकारियों और कर्मचारियों को यह नागवार गुज़र रहा है।
सर्वविदित है कि पुलिसिया दमन और भ्रष्टाचार पुलिस विभाग की छवि को धुमिल करता है और सालों एक ही स्थान (थानों) पर पुलिसकर्मियों के जमे रहने के कारण, इनकी जड़े गहरी होती जाती हैं। जिसे बाद में उखाड़ फेंकना मुश्किल हो जाता है। कई दफा इसकी कीमत पुलिस विभाग को अपनी छवि गिराकर चुकानी पड़ती है। ऐसा ही एक मामला दिल्ली के जिला द्वारका के थाना, सेक्टर-23 का प्रकाश में आया है। गोपनीय सूत्रों के अनुसार कांस्टेबल सुरेन्द्र कुमार (नंबर-1094/डीडब्लू/पीआईएस नंबर-29100580) जोकि पिछले 8 साल से द्वारका, सेक्टर-23 थाने में नियुक्त था। लगभग 8 महींने पहले सुरेन्द्र कुमार का द्वारका जिला से साउथ ईस्ट जिला में ट्रांसफर हो गया था, जिसकी रवानगी लगभग एक साल बाद हुई! इससे पहले सुरेन्द्र कुमार कांस्टेबल ने आउटर नॉर्थ का ट्रांसफर केंसिल करवाया था। अब यह (सुरेन्द्र कुमार) एक बार फिर से साउथ ईस्ट जिला से द्वारका जिला में आ गया है। एसआईपी ब्रांच से सुरेन्द्र कुमार को उसी दिन (25.09.21) को ही साउथ ईस्ट का बेल्ट नंबर-1315 से बदलकर द्वारका डिस्ट्रिक बेल्ट नंबर-1094 डीडब्लू दे दिया गया और दिनांक 25.09.21 को ही जिला द्वारका से थाना सेक्टर-23 में ट्रांसफर कर दिया गया। थाने के एसएचओ ने भी तत्परता दिखाते हुए दिनांक 26.09.21 को सुरेन्द्र कुमार कांस्टेबल को बामडोली, बीट नंबर-9 में इंचार्ज लगा दिया। बार-बार सुरेन्द्र कुमार इसी बीट पर नियुक्त होना क्यों पसंद करता है? आखि़र इसका राज क्या है? और अधिकारी इसकी पसंद का ख्याल क्यों रखते हैं? क्या इस बीट पर अवैध कमाई का जरिया अधिक है? जिससे यह अपने उच्च अधिकारियों को भी खुश रखता है की खुफिया जांच होनी चाहिए।
सूत्र बताते हैं कि उपरोक्त बीट में पिछले 8 साल से लगातार जमे रहने के कारण सुरेन्द्र कुमार कांस्टेबल के खिलाफ भ्रष्टाचार की बहुत सी शिकायतें पुलिस विभाग को प्राप्त हुईं। लेकिन न तो कभी उन पर जांच हुई और न ही कार्रवाई! दिल्ली के मौजूदा पुलिस कमिश्नर से लोग उम्मीद लगाए बैठें हैं कि इस तरह के लंबे अर्से से एक ही स्थान पर जमे बैठे पुलिसकर्मियों से इन्हें निजात मिलेगी और इनका एकछत्र राज़ ख़त्म होगा। वैसे भी नियमानुसार किसी भी सरकारी विभाग में 3 साल से अधिक एक ही स्थान पर कोई लगातार पदासीन नहीं रह सकता है। फिर भी दिल्ली के थानों में सालों से पुलिसकर्मी एक ही जगह जमे हुए हैं यह आश्चर्य की बात है। ट्रांसफर के दौरान अगर कोई पुलिसकर्मी दुबारा उसी स्थान पर जाना चाहता है, जहां वह पहले नियुक्त था तो उसकी जांच होनी चाहिए कि उस इलाके में, उस पुलिसकर्मी की छवि लोगों के बीच दबंगई और अवैध वसूली करने वाले की तो नहीं है। क्या वह इलाके में अपराध की रोकथाम करता है या बढ़ावा देकर अवैध कमाई। उस क्षेत्र में नशीले पदार्थाें की बिक्री तो नहीं हो रही है? युवा पीढी इसकी गिरफ़्त में तो नहीं है। फॉमहाउस, होटल, बार, शराब के ठेकों पर गैरकानूनी गतिविधियां तो नहीं चल रही हैं? अवैध सट्टा कारोबार तो नहीं फलफूल रहा है इत्यादि-2. जब ऐसा होगा तो लोगों के बीच पुलिस विभाग की छवि जनता की रक्षक की बनेगी और जनता, पुलिस मित्र बनेगी।
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